बी. ए. प्रथम वर्ष
ईकाई - 5
बस्तियों
के प्रतिरूप patterns of
settlement
रेखीय,
आयताकार, अरीय, चौक-पट्टी प्रतिरूप
Linear, Rectangular, Radial Checker Board pattern
7. बस्तियों के प्रकार Types of settlement
आकार के आधार पर
अ. ग्रामीण बस्तियों के प्रकार । Types
of settlement.
एकल अधिवास - यह ऐसा अधिवास होता है जिसमें एक घर होता है यह
घर खेत मालिक का खेत में या खेत के समीप हो सकता है। तालाब किनारे एकल मछुआरे का
हो सकता है। घास क्षेत्र में किसी पशुपालक का हो सकता है। ऐसे घर को एकल अधिवास
कहते हैं।
पुरवा - यह किसी ग्राम के पूर्व की स्थिति है इसमें एक से
अधिक घर होते हैं लेकिन इतने नहीं कि ग्राम का निर्माण हो जाये। नव आगन्तुकों,
भूमि की उपलब्धता या अनुपलब्धता, या जातीय कारणों से ग्राम के समीप कुछ दूरी पर
कुछ घरों का समूह बन जाता है जो पगडंडी या मार्ग से ग्राम से जुडा होता है उसे
पुरवा कहते हैं।
ग्राम - यह आवासों के समूह की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई
है यह कुछ घरों से लेकर हजार घरों से युक्त हो सकती है। किसी बडे ग्राम में अनेक
पुरवे भी हो सकते हैं।
ब. बसावट के आधार पर ग्रामीण
बस्तियों के प्रकार
सघन अधिवास(काम्पेक्ट रूरल सेटलमेंट)- इसमें
मकान एक दूसरे से सटे हुए होते हैं।ये एक स्थान पर सकेन्द्रित होते हैं। इन्हेंnucleated/agglomerate/clustered/ concentrated/न्यष्टितध्/सामूहिक/गुच्छित/संकेद्रित
अधिवास कहते हैं।सुरक्षा, परस्पर निर्भरता, प्राकृतिक, चारो उर्वर कृषि भूमि के
कारण, आवास हेतु भूमि की अनुपलब्धता या अन्य कारणों से ऐसा हो सकता है। भारत के
उत्तर के मैदानों में इस प्रकार के अधिवास पाये जाते है।
संयुक्त अधिवास(Composite)- इसमें एक प्रमुख अधिवास के अतिरिक्त अन्य अधिवास या पुरवे होते
हैं जो मुख्य अधिवास से संबंधित होते हैं। इन अधिवासों के मध्य अन्योंन्य
क्रियायें होती हैं जिनसे एक दूसरे की आवश्यकता पूरी होती हैं और संयुक्त रूप से
ये एक राजनैतिक प्रशासनिक इकाई होती है कृषि, परिवहन मार्ग या अन्य कारणों से
विकेन्द्रीकरण के कारण ये इकाईयॉ एक दूसरे से दूर स्थापित होते जाती हैं।
पुरवा युक्त ग्रामीण(Forgmental) - यह अधिवास दो या दो से अधिक पुरवों के मिलने
से बनता है। मुख्य अधिवास नहीं होता है। अलग अलग होने के बाद भी ये एक इकाई के
रूप में होते हैं। ये आपसी कार्य सामूहिकता के साथ करते हैं।
प्रकीर्ण अधिवास- इसमें एकल अधिवास एक दूसरे से दूर बिखरे हूए
होते हैं। ऐसा खेतों की देखभाल के लिए बनाये गये खेत घरों के कारण, बंजर भूमि या
अनय कारणों से हो सकता है।
ब. नगरीय बस्तियों के प्रकार Type of urban settlement.
(1) आकार के आधार पर
नगरीय गॉव(अरबन विलेज)- यहॉ 100 से 150 की जनसंख्या पायी जाती है जिसका
75 प्रतिशत से अधिक गैर प्राथमिक कार्यों में संलग्न होता है।
कस्बा(टाउन)- यह ग्राम और नगर के मध्य की वह स्थिति है जिसकी जनसंख्या गॉव से अधिक होती है जिसमें नगरीय कार्यों का विकास हो जाता है ये कार्य कस्बा की जनसंख्या और और आसपास की नगरीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। कस्बे में ग्रामीण और नगरीय दोनों कार्य पाये जाते हैं। कस्बा ग्राम से अधिक क्रियाशील और नगर बनने की प्रक्रिया में होता है।
नगर(सिटी)- ऐसे अधिवास जिसके निवासी गैर प्राथमिक व्यवसायों द्वारा अपना जीवकोपार्जन करते हैं। नगरीय अधिवास या नगर कहलाते हैं। अर्थात नगरीय अधिवासों में द्वीतीयक, तृतीयक व चतुर्थक कार्यों की प्रधानता होती है।
भारतीय जनगणना विभाग के अनुसार भारत में नगर को निम्नलिखित
प्रकार से परिभाषित किया गया है-
1. अ. जनसंख्या कम से कम 5000 हो
ब.
पुरूष कार्यशील जनसंख्या का कम से कम 75 प्रतिशत भाग अकिृषित कार्यों में संलग्न हो,
स.
जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से अधिक हो।
2. वह सभी बस्तियॉ जो सरकार द्वारा नोटिफाइड
एरिया, छावनी बोर्ड, नगरपालिका या महापालिका क्षेत्र में शामिल कर ली जायें उनको
नगरीय बस्ती का पद दिया जाता है।
अत: नगरीय अधिवास में रहवासी आवासों के अतिरिक्त
उद्योग, परिवहन, व्यापार, संचार व सेवा क्षेत्र से संबन्धित कार्य एवं संरचनायें
होती हैं। रहवासी आवासों में बहुमंजिला इमारते, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन,
बैंक जैसे कार्यों हेतु सामुदायिक भवन होते हैं। आवागमन हेतु चौडी सडके, रेल मार्ग
हवाई अड्डे आदि होते हैं।
महानगर(मेट्रोपोलिश)-
महानगर का अर्थ है बडा या वृहद नगर है। भारत में 10,00,000
से अधिक जनसंख्या के नगरों को महानगर कहा जाता है। लेविस ममफोर्ड के अनुसार नगर अपने विकास की तृतीय अवस्था में
मेट्रोंपोलिस कहलाता है। महानगर में प्रादेशिक स्तर के वाणिज्यिक, व्यापारिक,
प्रशासनिक, सांस्कृतिक, परिवहन व संचार कार्य होते हैं। मध्य भाग में सी बी डी
होता है जिसमें केन्द्रीय व्यापारिक गतिविधियॉ थोक व फुटकर व्यापार का जमघट
होता है।
सन्नगर(कोनरबेशन)
- यह एक से अधिक नगरों का समूह होता है जो कि एक से
अधिक नगरों के मिल जाने से बनता है फिर भी नगरों का अपना अस्तित्व होता है। एक
सन्नगर में नगरीय तत्व एक जैसे नहीं होते बल्कि विरल व सघन होते हैं। इनकी
प्रशासनिक इकाईयॉ भी भिन्न भिन्न हो सकती हैं। सन्नगरों को कांग्लोमरेशन/टाउन
एग्रेगेट/टाउन कॉस्टेलेशन /अर्बन काम्प्लेक्स शब्दों का प्रयोग किया जाता
है।
कार्य के आधार पर नगरों के प्रकार
Type of urban settlement basis of work.
1. औद्योगिक नगर- यहॉ औद्योगिक कार्यों की प्रधानता रहती है।
देवास, पीथमपुर, टाटानगर, हावडा, भिलाई, शोलापुर, सिंदरी, मैनचेस्टर, बर्मिंघम,
गाजियाबाद, लुधियाना।
2. व्यापारिक नगर- यहॉ आयात निर्यात और व्यापारिक गतिविधियॉ
होती हैं। सिंगापुर, हांगकांग, कोलकाता, मुम्बई, न्यूयार्क आदि
3. परिवहन नगर- इन नगरों का विकास परिवहन के महत्व के कारण
होता है। इटारसी, नैनपुर, मुगलसराय, स्वेज, पनामा।
4. खनिज उद्योग के नगर- इन नगरों का विकास वहॉ पाये जाने वाले
खनिजों के उत्पादन के फलस्वरूप होता है। कालगूर्ली, कूलगार्डी, खेतडी, मलाजखण्ड,
झारिया, बोकारो।
5. शैक्षिक नगर- आक्सफोर्ड,
कैम्ब्रिज, वाराणसी,, हारवर्ड, मैसाचुसेट, खडगपुर।
6. प्रशासनिक नगर- इन नगरों में मुख्य रूप से प्रशासनिक
गतिविधियॉ होती हैं जैसे देश या प्रदेश की राजधानियॉ इनमें दिल्ली, भोपाल, चण्डीगढ
आदि।
7. धार्मिक नगर- ऐसे नगरों का उद्भव
उनकी धार्मिक विशेषता के कारण होता है जैसे अयोध्या, मथुरा, अमरकंटक, काशी,
हरिद्वार, पुरी आदि।
8. पर्यटन नगर- स्वाथ्य लाभ या प्राकृतिक सुन्दरता या अन्य
दर्शनीय स्थलों के कारण इन नगरों का विकास हुआ है जैसे श्रीनगर, शिमला, दार्जिलिंग,
उॅटी, आबू, पंचमढी आदि।
बस्तियों के प्रतिरूप patterns of settlement
रेखीय/लम्बाकार प्रतिरूप (Linear/Ribbon/elongated
pattern)
आशय - इसमें सडक, नहर, नदी के अनुरूप किनारे बने
मकानों से बने अधिवास को रेखीय/लम्बाकार/रिबन प्रतिरूप
अधिवास कहते है।
आकृति- इन अधिवासों की आकृति रेखाकृति होती है यह रेखा
नदी, सडक व नहर के अनुसार सीधी या वक्र हो सकती है।
कारण- नदी, सडक या नहर ग्राम के लिए आवश्यक परिवहन
या जीविका का साधन होती है। नदी व नहर से एक ओर जल की प्राप्ति होती है दूसरी ओर
परिवहन के साथ साथ मत्स्यन का साधन होती है। सडक से परिवहन के साथ साथ आर्थिक
गतिविधियों हेतु संभावित ग्राहक प्राप्त होते हैं।
उदाहरण- देहरादून घाटी जहॉ दोनो ओर की पहाडियों के मध्य
लम्बी सकरी घाटी में सडक के दानो किनारों पर, उडीसा का समुद्र तटीय मैदान, निम्न
गंगा का मैदान
आयताकार
प्रतिरूप(Rectangular pattern)
आशय- अधिवासों का ऐसा समूह जिससे आयत की आकृति बनती
है आयताकार प्रतिरूप है। यह दो प्रकार का होता है एक खोखला आयताकार प्रतिरूप दूसरा
भरा हुआ आयताकार प्रतिरूप।
कारण - खोखला आयताकार प्रतिरूप में आयताकार तालाब, पोखर
के चारो ओर मछुआरों की बस्ती तालाब, पोखर से मछुआरों की जीविका यापन होता है साथ
ही वह घरेलू उपयोग हेतु जल की आवश्यकता भी पूरी करता है। आक्रमणकारियों से सुरक्षा कारणों से आयताकार किले के चारो ओर
प्रजा की बस्ती का निर्माण हो जाता है जिससे आक्रमण की अवस्था में शीघ्र ही किले
में शरण ली जा सके। ठोस आयताकार प्रतिरूप अधिवास ऐसे स्थानों पर पाये जाते हैं
जहॉ सघन अधिवास हों और भूमि उपयोगिता भूमि मूल्य अधिक होने से मकान पास पास होते
हैं और आयताकार रूप ले लेते हैं।
अरीय
त्रिज्या प्रतिरूप (Radial pattern)
आशय - केन्द्रीय भाग से चारो ओर मार्गों के अनुरूप
विकसित अधिवास को अरीय त्रिज्या प्रतिरूप कहते हैं।
कारण- केन्द्रीय भाग महत्वपूर्ण आकर्षण का केन्द्र
होता है जैसे प्रधान का घर, पानी का कुआ, मंदिर, बाजार, चबूतरा आदि। जिसके समीप और
केन्द्रीय भाग तक जाने वाले मार्ग पर आवास बनना प्रारंभ हो जाते हैं। शनै: शनै:
इस केन्द्रीय भाग के चारो ओर मार्गों के अनुरूप आवासो का निर्माण होता रहता है।
जिससे गॉव का प्रसार होता है। इस प्रकार बनी आकृति रेडियल या अरीय या त्रिज्या
प्रतिरूप होती है।
उदाहरण - मैदानों
में स्थित भारत के अधिकांश गांव इसी प्रकार के हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मालवा
आदि।
चौक पट्टी प्रतिरूप (Checker board pattern/Linear and square agglomerate)
आशय - दो मार्गों के समकोण पर मिलने और इन मागों के
समान्तर अन्य अवासों और मार्गों के निर्माण से बनी चैकरबोर्ड आकृति को चौक पट्टी
प्रतिरूप कहते हैं।
कारण - समतल मैदानों में जहॉ भूमि का मूल्य और महत्व
समान होता है। यदि समान महत्व की दो सडके एक दूसरे को काटती हैं दोनो सडकों के
दोनो ओर आवास बनना प्रारंभ हो जाते हैं।
तत्पश्चात इन आवासों के सामान्तर और आवास बनने प्रारंभ हो जाते हैं जिन्हें
मुख्य सडक से जोडने के लिए सडक के सामान्तर अन्य सडके बनायी जाती हैं इस प्रकार समान्तर सडको
और आवासों के बनने से इन आवासों को समूह चौक पट्टी प्रतिरूप ग्रहण कर लेता है।
उदाहरण- पश्चिमी
उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक आदि।
सर्वाधिकार लेखकाधीन©
Patelajaysingh785@gmailcom
Professorkibaat.blogspot.com
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