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 शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान ही क्‍यों ?

        मध्‍य प्रदेश के अशासकीय एवं अनुदानित महाविद्यालयों के कार्यरत एवं कार्य कर चुके सभी प्रकार के सहायक प्राध्‍यापकों को शासकीय महाविद्यालयों में कार्य करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित करने की व्‍यवस्‍था को व्‍यक्‍त करता विश्‍लेषण ।

या

मध्‍य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में अतिथि विद्वानों की भर्ती व स्‍थायी भर्ती में अन्‍य योग्‍य उम्‍मीदवारों की तुलना में शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वानों को दामाद बनाती व्‍यवस्‍था का विश्‍लेषण।

मध्‍य प्रदेश उच्‍च शिक्षा विभाग के अनुसार मध्‍य प्रदेश में 49 विश्‍वविद्यालय1405 महाविद्यालय हैं जिनमें से 516 शासकीय महाविद्यालय हैं।

 इनमें कार्यरत समस्‍त शिक्षकों की योग्‍यता एवं कार्य यू.जी.सी. के मापदण्‍ड अनुसार है। इन सभी पर उच्‍च शिक्षा के शासकीय आदेश निर्देश समान रूप से कार्य करते हैं किन्‍तु शासकीय महाविद्यालयों की तुलना में अशासकीय महाविद्यालयों में मिलने वाला पारिश्रमिक अत्‍यन्‍त कम है। 

कार्य और वेतन के आधार पर ये सभी शिक्षकशासकीय महाविद्यालय में अस्‍थायी रूप से कार्य करने वाले अतिथि विद्वानों से भी अधिक शोषित और पीडित हैं।

ये सभी शासकीय महाविद्यालयों में स्‍थायी पदों एवं अस्‍थायी  (अतिथि विद्वान) रूप में कार्य करने के लिये भी उम्‍मीदवार हैं किन्‍तु इन्‍हें ऐसा करने  के पर्याप्‍त अवसरों से रोका जा रहा है

क्‍या कारण है कि इन्‍हें शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान का कार्य करने पर रोक है।

सहायक प्राध्‍यापक की स्‍थायी भर्ती में इनके अनुभव के अंकों को क्‍यों शून्‍य मान लिया जाता है ?

इन सभी प्रश्‍नों का ऑखे खोल देने वाला विश्‍लेषण निम्‍नलिखित है।   

शासकीय या अन्‍य महाविद्यालयों में कार्यरत या कार्य कर चुके अस्‍थायी शिक्षक अतिथि विद्वान कहे जाते हैं।

मध्‍य प्रदेश उच्‍च शिक्षा में सहायक प्राध्‍यापक के पद रिक्‍त होने, शिक्षण हेतु शिक्षक की आवश्‍यकता होने पर किसी सत्र या समयावधि हेुत शिक्षक की आवश्‍यकता पूर्ति हेतु कार्य करने वाले शिक्षक का कार्य करने वाला व्‍यक्ति अतिथि विद्वान हैं। उच्‍च शिक्षा में इस प्रकार का कोई पद नहीं है। 

मध्‍य प्रदेश के विभिन्‍न महाविद्यालयों एवं विश्‍वविद्यालयों में अध्‍यापन कार्य करने वाले व्‍यक्तियों का कार्य क्षेत्र निम्‍नलिखित अनुसार है।

 


उक्‍त के समकक्ष किन्‍तु स्‍थायी शिक्षक जो शोषित और पीडित हैं। वे भी निम्‍नलिखित अनुसार हैं।

उक्‍त आवश्‍यकता पूरी होने पर अतिथि विद्वान का कार्य समाप्‍त होने पर उसका कार्यकाल भी समाप्‍त हो जाता है। इस प्रकार अतिथि विद्वान  व्‍यक्ति/व्‍यक्तियों का कार्यकाल भी अस्‍थायी होता है।

सामान्‍यत: प्रतिवर्ष जुलाई में शिक्षण सत्र प्रारंभ होने पर शिक्षक की कमी होने पर शिक्षण कार्य हेतु विज्ञापन प्रकाशित किया जाता है इस हेतु योग्‍यतम उम्‍मीदवार चुने जाने की परम्‍परा रही है।

विगत कुछ वर्षों से शासकीय महाविद्यालयों में इन अतिथि विद्वानों को एक शिक्षण सत्र के चार अनुभव अंक व अधिकतम 20 अनुभव अंक प्रदान किये जाने लगे हैं। 

इस कारण शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान, अतिथि विद्वानों की चयन प्रक्रिया में वे शेष गैर शासकीय महाविद्यालय के अतिथि विद्वानों से अनुभव अंकों के साथ चुने जाने में वरीयता प्राप्‍त कर लेते हैं।

इसी प्रकार सहायक प्राध्‍यापकों की स्‍थायी भर्ती में भी शासकीय महाविद्यालय के अतिथि विद्वान अधिकतम 20 अंकों की वरीयता प्राप्‍त कर लेते हैं।

(उच्‍च शिक्षा विभाग, मध्‍य प्रदेश शासन हेतु सहायक प्राध्‍यापक के पदों की पूर्ति हेतु विज्ञापन क्रमांक 7/2017 /12.12. 2017 के परिशिष्‍ट-2 मध्‍य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में अतिथि विद्वान के रूप में कार्यानुभवय के आधार पर दे वरीयता अंक तथा आयु सीमा में छूट संबंधी व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत  अतिथि विद्वान प्रति सत्र अधिकतम 4 अतिरिक्‍त वरीयता अक के मान से अधिकतम 20 अंक की सीमा तक वरीयता अंक प्राप्‍त करेंगें वरीयता अंक अंतिम मेरिट सूची तैयार करते समय जोडे जायेंगें)

उल्‍लेखनीय है कि शासकीय अतिथि विद्वानों की भर्ती में उसी महाविद्यालय में जनभागीदारी द्वारा नियुक्‍त अस्‍थायी शिक्षक (जो कि अतिथि विद्वान जैसा ही कार्य कर रहे हैं) को शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान के समकक्ष नहीं रखा जाता था उसके अनुभव को अंको में नहीं गिना जाता है न ही विश्‍वविद्यालय के अतिथि विद्वानों के अनुभव को अंकों में शामिल किया जाता है।

मध्‍य प्रदेश पी. एस. सी. उच्‍च शिक्षा सहायक प्राध्‍यापक की भर्ती में न्‍यायालय के हस्‍तक्षेप व मांग किये जाने पर इनके अनुभव अंको को भी माना जाने लगा लेकिन आज भी शासकीय अनुदान प्राप्‍त अशासकीय महाविद्यालय के स्‍थायी/ अस्‍थायी/ अतिथि विद्वानों का अनुभव मान्‍य नहीं है।

आश्‍चर्य की बात है कि शासकीय, अशासकीय व अनुदानित महाविद्यालयों एवं विश्‍वविद्यालयों में अतिथि विद्वान समान कार्य करते हैं। इन सभी के पढाये हुए विद्यार्थी समान डिग्री प्राप्‍त करते हैं। सभी मध्‍य प्रदेश शासन उच्‍च शिक्षा विभाग के निर्देशों, आदेशों का पालन करते हैं। सभी की न्‍यूनतम आवश्‍यक योग्‍यता एक जैसी है फिर शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वानों को ही अनुभव अंक क्‍यों ? शेष के अनुभव को अंक क्‍यों नहीं ?

वर्तमान में मध्‍य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वानों की भर्ती फिर चर्चा में है क्‍योंकि -

अब प्रदेश सरकार ने एक कदम आगे बढते हुए शासकीय महाविद्यालयों में अतिथि विद्वानों की चयन प्रक्रिया में पूर्व एवं वर्तमान अतिथि विद्वानों को छोडकर शेष सभी उम्‍मीदवारों को अतिथि विद्वान पद हेतु आवेदन करने से वंचित कर दिया है।

(कार्यालय आयुक्‍त उच्‍च शिक्षा के पत्र क्रमांक 936/308/आउशि/शाखा-2/21 भोपाल, दिनांक 30/06/21 के अनुसार अतिथि विद्वानों के आंमत्रण हेतु स्‍वीकृत रिक्‍त पदों के विरूद्ध उन्‍हीं अतिथि विद्वानों को आमंत्रित किया जाये जो कि सत्र 2020-21 की स्थिति में आमंत्रित रहे हो। यद्यपि 2022 के अतिथि विद्वान की भर्ती में नये उम्‍मीदवारों को भी मौका दिया है लेकिन अनुभव अंकों के अभाव में -20 अंकों तक के साथ वे पीछे रह जायेंगें) 

उच्‍च शिक्षा में अनुभव रखने वाले यह वंचित उम्‍मीदवार और अनुभव न रखने वाले योग्‍य उम्‍मीदवार अब उच्‍च न्‍यायालय की शरण में हैं।

प्रदेश के उच्‍च न्‍यायालय की ग्‍वालियर और इन्‍दौर पीठ में गये कुछ उम्‍मीदवारों को अतिथि विद्वान हेतु आवेदन कर पाने की सशर्त अनुमति दे गयी है लेकिन उच्‍च न्‍यायालय जबलपुर ने ऐसी अनुमति नहीं दी है।

यहॉ प्रश्‍न वही है कि शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान पद हेतु अतिथि विद्वान ही क्‍यों ?

क्‍या सरकार का उक्‍त  निर्णय अनुचित और भेदभाव पूर्ण है ?

क्‍या सरकार अतिथि विद्वानों के साथ न्‍याय करने के फेर में शेष के साथ अन्‍याय कर बैठी ?

इसे निम्‍नलिखित तर्कों से समझा जा सकता है।

1. प्रदेश के महाविद्यालयों में अध्‍यनरत छात्रों को उत्‍कृष्‍ट शिक्षक से उत्‍कृष्‍ट शिक्षा प्राप्‍त करने का अधिकार है।

यह सुनिश्चित करने के लिए उच्‍च शिक्षा विभाग मध्‍य प्रदेश शासन जैसे सरकारी संस्‍थान का निर्माण किया गया जिसका पोषण प्रदेश की जनता से करों के संग्रहण से प्राप्‍त धन द्वारा वेतन और सम्‍पत्ति के रूप में होता है।

क्‍या इस संस्‍था द्वारा ऐसे आदेश पारित करना उचित है ? जिसमें अतिथि विद्वान के पद हेतु शासकीय महाविद्यालय के अतिथि विद्वान या पूर्व अतिथि विद्वान होना ही परम योग्‍यता है?

2.  क्‍या सरकार की यह मंशा अतिथि विद्वानों के रोजगार को संरक्षण करने की है ?

यदि हॉ तो सरकार को उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त बेरोजगारों के लिए मनरेगा की भांति एक उपक्रम या निकाय बनाना होगा लेकिन सरकार शेष योग्‍य उम्‍मीदवारों को शिक्षण कार्य से वंचित नहीं कर सकती न ही विद्यार्थियों को उत्‍कृष्‍ट शिक्षक से शिक्षा प्राप्‍त करने के अधिकार से वंचित कर सकती है।

3. आखिर सरकार ऐसा क्‍यो करना चाहती है ?

क्‍या सरकार बनाने वाली पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अतिथि विद्वानों को रोजगार संरक्षण का वादा किया था ?

यदि हॉ तब शेष उम्‍मीदवारों के रोजगार संरक्षण का दायित्‍व भी तो सरकार का ही है।

घोषणा पत्र पार्टी का था तो पार्टी उन्‍हें वंचित कर सकती है सरकार नहीं।

सरकार और पार्टी में अंतर होता है पार्टी उन लागों की होती है जो इसकी सदस्‍यता लेते हैं और समर्थन करते है लेकिन सरकार शासन क्षेत्र के प्रत्‍येक निवासी की होती है चाहे उसने मत दिया हो या नही ।

तो क्‍या सरकार को ऐसा करना चाहिए ? या करना पडता है ? क्‍या यह उचित है ?

4. कई बार सरकारों पर विभिन्‍न दबाव समूहों का दबाव होता है। कई बार सरकारें इन समूहों के हित में काम भी करती हैं लेकिन ये दबाव समूह उत्‍पादक होने चाहिए जिनसे प्रदेश, देश या लोगों का भला होता हो।

क्‍या अतिथि विद्वानों द्वारा पूर्व में ऐसा दबाव बनाया गया जिससे सरकार ने सरकारी महाविद्यालयों के अल्‍प अतिथि विद्वानों के हितों हेतु शेष समग्र योग्‍य उम्‍मीदवारों की अर्हताओं की अव्‍हेलना की है ? 

क्‍या सरकार का ऐसा करना विधि सम्‍मत है ? 

क्‍या न्‍यायालय इसे विधि संगत न होने के आधार पर रोक सकते थे या रोक सकते हैं ?

यदि हॉ तो क्‍या प्रदेश के माननीय न्‍यायालयों ने सरकार को ऐसा करने से रोका है ?

न्‍यायालयों का कार्य है संविधान की रक्षा करना क्‍या इसमें संविधान का उल्‍लंघन हो रहा है ?

5. संविधान में उल्‍लेखित अवसरों की समता के अनुसार सरकार स्‍थायी/अस्‍थायी/अतिथि विद्वानों के पदों की भर्ती में सरकारी अतिथि विद्वान/निजि अतिथि विद्वान/सरकारी महाविद्यालयों में जनभागीदारी के अन्‍तर्गत नियुक्‍त अतिथि विद्वान/ अनुदानित महाविद्यालयों में सेल्‍फ फाइनेन्‍स के अन्‍तर्गत नियुक्‍त अतिथि विद्वान या अस्‍थायी शिक्षक या स्‍थायी शिक्षक/विश्‍वविद्यालय में कार्यरत या कार्य कर चुके अतिथि विद्वान या ऐसे शिक्षण कार्य करने की योग्‍यता रखने वाले स्‍वतन्‍त्र उम्‍मीदवारों में भेद भाव नहीं कर सकती। 

सरकार को उक्‍त पदों की भर्ती में सभी को अवसर प्रदान करना होगा। ऐसा न करना संविधान से प्राप्‍त अवसरों की समानता का उल्‍लंघन होगा।

6. मध्‍य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि शिक्षकों का वेतन/मानदेय/पारिश्रमिक 30,000 से 40,000 है जबकि अन्‍य प्रतिस्‍पर्धी उपर उल्‍लेखित स्‍थायी/अस्‍थायी शिक्षकों का वेतन/मानदेय/पारिश्रमिक  राशि 4,000 से 20,000 तक है

इस आधार पर शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान आर्थिक रूप से अधिक समृद्ध या कम शोषित हैं।

शोषण के आधार पर उल्‍लेखित अन्‍य वर्ग के शोषित शिक्षकों का शासकीय महाविद्यालय में अतिथि विद्वान हेतु, अवसर के अधिक अधिकार रखते हैं।

अत: मध्‍य प्रदेश शासन उच्‍च शिक्षा विभाग के कार्यों से अन्‍य वर्गों के शोषित शिक्षकों के अवसर की समता के अधिकारों का उल्‍लंघन हो रहा है।

7. संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में है अत: इसमें प्रदेश सरकार को दायरे में रहते हुए शिक्षा सम्‍बन्‍धी निर्णय लेने का अधिकार है। इससे सम्‍बन्धित कानून बना सकती है लेकिन-

अ. ये कानून प्रदेश की जनता को भारत के संविधान से प्राप्‍त अवसरों की समता के अधिकार का उल्‍लघंन करने वाले नहीं हो सकते।

ब. प्रदेश सरकार प्रदेश के सभी उम्‍मीदवारों के समान शिक्षण अनुभव में भी भेदभाव नहीं कर सकती।

स. यह कि अनुभवहीन और योग्‍यताहीन समान नहीं है अनुभव हीन को आवेदन का अवसर न देना उच्‍च शिक्षा में शिक्षण हेतु केन्‍द्र व प्रदेश के योग्‍यता संबंधी कानूनों का उल्‍लघंन है। 

(कार्यालय आयुक्‍त उच्‍च शिक्षा के पत्र क्रमांक 936/308/आउशि/शाखा-2/21 भोपाल, दिनांक 30/06/21 के अनुसार अतिथि विद्वानों के आंमत्रण हेतु स्‍वीकृत रिक्‍त पदों के विरूद्ध उन्‍हीं अतिथि विद्वानों को आमंत्रित किया जाये जो कि सत्र 2020-21 की स्थिति में आमंत्रित रहे हो।)

8. सरकार सरकारी संस्‍थानों में रिक्‍त स्‍थायी अस्‍थायी पदों को कार्पोंरेट या निजी संस्‍थानों की तरह उपयोग नहीं कर सकती।

सरकारी सस्‍थानों में स्थित पदों पर आवेदन हेतु प्रदेश के गैर सरकारी लोगों का उतना ही अधिकार है जितना कि सरकारी संस्‍थानों में कार्य करने वाले या कार्य कर चुके व्‍यक्ति या व्‍यक्तियों का, क्‍योंकि सरकारे लोगों के मतों से बनती हैl इन सरकारी संस्‍थानों की मालिक जनता है न कि सरकार।

शासकीय संस्‍थान और कर्मचारी, आम जनता के करों से पोषित होते हैं।

यदि सरकारें कार्पोरेट या निजी संस्‍थान की तरह कार्य करती है तो संविधान की प्रस्‍तावना में उल्‍लेखित ''हम भारत के लोग'' जो कि सरकार की स्‍वामी है और जिनके लिये सरकार बनी है, शब्‍द का अर्थ समाप्‍त हो जायेगा।

      उक्‍त विवरण से स्‍पष्‍ट है कि मध्‍य प्रदेश सरकार मध्‍य प्रदेश शासन उच्‍च शिक्षा विभाग के माध्‍यम से शासकीय महाविद्यालय में अतिथि विद्वानों के आमन्‍त्रण आवेदन हेतु विज्ञापन देने में संवैधानिक भूल हुई है जिसे सुधारना आवश्‍यक है।

यदि सरकारें भूल सुधार हेतु संज्ञान में नहीं लेती है तो संविधान के अनुसार लोगों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु न्‍यायालयों का हस्‍तक्षेप आवश्‍यक हो जाता है।

उक्‍त सरकारी कार्य से पीडित, वंचित उम्‍मीदवारों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्‍छी नहीं है कि व्‍यक्तिगत स्‍तर पर न्‍यायिक प्रक्रिया का आर्थिक भार उठा सकें।

        आगे भगवान की मर्जी क्‍योंकि जिनकी मर्जी से बदलाव हो सकता है उन सबका वेतन तो जनता और पाठक के टैक्‍स से पहॅुच ही रहा है।

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Milan Tomic

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