Oceanography
ईकाई - 4
|
ईकाई - 4
Unit - 4 |
प्रवाल तथा प्रवालभित्ति, उनके
प्रकार एवं उत्पत्ति के सिद्धान्त, भोजन तथा
खनिज के स्त्रोत रूप में समुद्र, हिन्द
महासागर के विशेष संदर्भ में। |
|
Corals and coral reefs: types and theories of their origin, ocean as a source of food and Minerals with special reference to Indian ocean. |
प्रश्न - 1. प्रवाल क्या है ?
उत्तर - प्रवाल सूक्ष्म सागरीय जीव है जो अपने चारो ओर चूने का खोल
बनाते हैं प्रवालों की अगली पीढी इन्हीं चूने के खोलों पर विकसित होती है।
प्रवालों की 10,00,000 प्रजातियॉ होती हैं इस कारण इन्हें सागरीय वर्षा वन भी कहा
जाता है।
प्रश्न - 2. प्रवाल के जीवित रहने की दशाओं को लिखिये।
उत्तर - 1 . प्रवाल को जीवित रहने के लिए 200 से 250 फीट से अधिक
गहराई नहीं होना चाहिए क्योंकि सूर्य प्रकाश के अभाव में कोरल जीवित नहीं रह
सकते।
2. सागरीय जल का तापमान 20 से 21 अंश सेल्सियस होना चाहिए इस कारण
प्रवाल केवल उष्ण कटिबन्धीय सागरों में पाये जाते हैं।
3. चूना प्रवाल का मुख्य भोजन है अत: सागरीय लवणता 27 से 30 प्रति
सहस्त्र होनी चाहिए।
4. प्रवाल के विकास के लिए छिछले सागरीय जल में डूबे हुए द्वीपों या
तटों की आवश्यकता होती है।
5. प्रवाल के अवसाद मुक्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है गंदले और
प्रदूषित जल में प्रवाल मर जाते हैं।
6. सागरीय लहरे एवं धारायें प्रवालों के लिए भोजन लाती हैं अत: प्रवाल
खुले सागरों में पाये जाते हैं जबकि बन्द सागरों में इनका अभाव होता है।
प्रश्न - 3. प्रवाल भित्ति क्या हैं ?
उत्तर - दीर्घ अवधि में प्रवालों के निरन्तर विकास से उनके चूनों के
खोल समूह से सागर में ठोस स्थल संरचना का निर्माण हो जाता है जिसे प्रवाल भित्ति
कहते हैं। इस भित्ति का विकास महाद्वीपीय मग्नतट के साथ, द्वीप या द्वीप समूहों के
निमग्नतट के साथ होता है।
प्रश्न - 4. प्रवाल भित्ति के प्रकार लिखिये।
उत्तर - विकास की दशाओं के आधार पर प्रवाल भित्ति तीन प्रकार की होती है।
1. तटीय प्रवाल भित्ति
महाद्वीपों एवं द्वीपों के निमग्न तटों अथवा सागर में डूबे हुए
चबूतरों पर अन्य आवश्यक दशायें अनुकूल होने पर उपर एवं बाहर की ओर प्रवालों का
विकास प्रारंभ होता है एक लम्बे समय में
इन प्रवालों से निर्मित भित्ति को तटीय प्रवाल भित्ति कहते हैं।
2. अवरोधक प्रवाल भित्ति
तटीय प्रवाल भित्ति में अनुकूल दशायें होने पर प्रवालों का विकास होता
रहता है चूंकि तटीय भित्ति उपर की ओर जलतल तक विकास कर चुकी होती है अत: अब इसमें
खुले सागर की ओर से उपर की ओर विकास होता है। विकसित अवरोधक प्रवाल भित्ति की बाहय
सीमा और स्थल का भाग एक छिछली झील या लैगून होती है जिसमें छोटी नावें चलायी जा
सकती हैं। आस्ट्रेलिया का ग्रेट बेरियर
रीफ अवरोधक प्रवाल भित्ति का उदाहरण है।
3. एटॉल
खुले सागर में किसी द्वीप या डूबे हुए द्वीप के चारो ओर किसी वृत्ताकृति
या अर्द्ध वृत्ताकृति में बाहर उपर की ओर
प्रवालभित्ति बनती है इसकी अन्तिम दशा में
बीच का द्वीप दिखायी नहीं देता है केवल वलयाकार प्रवाल दिखायी देता है इसे
ही ऍटाल कहते हैं। फुराफूटी एटॉल एटॉल का उदाहरण है।
प्रश्न - 5. डार्विन का प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति
का अवतलन सिद्धान्त समझाइये।
उत्तर - डार्विन के अनुसार सागर में चबूतरे या द्वीप तट पर प्रवाल
विकसित होकर सागर तल तक पहॅुच जाते हैं जिसे तटीय प्रवाल भित्ति कहते हैं इसके बाद
प्रवाल भित्ति सहित स्थल में गिरावट आती है उपर प्रवाल विकसित होते हैं तथा वह
स्थिर नहीं होता है वरन् धीमी गति से उसमें अवतलन होता है प्रवालों में पुन: बाहर
और उपर की सागर तल तक इसका विकास होता है जिससे अवरोधक प्रवाल भित्ति का विकास
होता है। इसमें स्थल से प्रवाल की बाह्य सीमा के मध्य लैगून का विकास होता है
पुन: अवतलन होने से द्वीप जल में डूब जाता है फिर प्रवाल का विकास होता है जिससे
ऍटाल का निर्माण होता है। वर्तमान में सागर में पाये जाने वाले एटॉल डार्विन की
प्रवाल सिद्धान्त के अनुरूप प्रतीत होते
हैं।
प्रश्न - 6 मरे का प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति का
स्थिर स्थल सिद्धान्त लिखिेये।
उत्तर - मरे के स्थिर स्थल सिद्धान्त के अनुसार सागरतल तथा
सागरनितल स्थिर होता है। चूकि प्रवाल 30 फैदम की गहराई तक ही जीवित रह सकते हैं
अत: इस गहराई से नीचे पाये जाने वाले स्थल जमाव प्रक्रिया से उक्त प्रवाल के लिए
आवश्यक उॅचाई प्राप्त कर लेते हैं जबकि अधिक उॅचे भागों में घुलन क्रिया से
चबूतरे या स्थल प्रवाल के लिए उचित उचाई प्राप्त कर लेते हैं। अवरोधक प्रवाल
भित्ति में निर्मित लैगून घुलन क्रिया का परिणाम है और एटॉल में उत्पन्न लैगून भी घुलन क्रिया का परिणाम है। इस प्रकार मरे ने प्रवालों का उनकी आदर्श
स्थिति से अधिक गहराई में पाये जाने को समझाने के लिए अपनी सुविधा से जमाव व घुलन
क्रिया का अपनी सुविधा से उपयोग किया है।
प्रश्न - 7. डेली का प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति का
हिमानी नियंत्रण का सिद्धान्त लिखिेये।
उत्तर - डेली के प्रवाल
भित्तियों की उत्पत्ति के सिद्धान्तानुसार प्लीस्टोसीन हिमकाल के दौरान सागरतल
में 33 से 38 फैदम की गिरावट आ गयी जिससे सागर तटों पर स्थलों की प्राप्ति हुई इन
स्थलखण्डों का अपरदन हुआ जिससे चबूतरो व सीढीनुमा स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ।
हिमकाल की समाप्ति पर सागरीय जल में 33 से 38 फैदम की वृद्धि हो गयी जिससे अपरदन
से निर्मित चबूतरे आदि स्थल डूब गये और इन में से संकरे स्थलों पर तटीय प्रवाल
भित्ति, चौडे चबूतरों पर अवरोधक प्रवाल भित्ति और खुले सागरों में डूबे पठारों
पर एटॉल का विकास हुआ जिनके मध्य भागों
में लैगून का निर्माण हुआ। उक्त सिद्धान्त की आलोचना प्रवालों की समान गहराई न
होना तटों व द्वीपों पर क्लिफ का निर्माण न होना व प्रवाल भित्तियों के मध्य
द्वीपों का मिलने के आधार पर की जाती है।
प्रश्न - 8. सागरीय खाद्य स्त्रोतों का वर्गीकरण
कीजिए।
उत्तर - 1. प्लैंकटन - पादप प्लैंकटन, जन्तु प्लैंकटन
2. मछलियॉ - छिछले सागर की मछलियॉ, गहरे सागर की मछलियॉ
3. अन्य जीव - खोल और बिना खोल वाले जीव, सागरतली के अन्दर रहने
वाले जीव, छिछले सागर के जीव, गहरे सागर
के जीव
4. वनस्पतियॉ - सागर जलतल की
जडविहीन तैरती हूई घांस वनस्पति, सागरीय काई, घास, पौधे आदि।
पेय जल के रूप में - शोधन उपरान्त सागरीय जल को पेय जल में परिवर्तित
किया जाता है।
प्रश्न - 9 सागरीय खनिज स्त्रोतों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर - 1. धात्विक खनिज जैसे हीरा, गंधक, प्लेटिनम, फास्फोराइट, मोनाजाइट आदि छिछले
सागर में मिलते हैं।
2. मैगनीज, निकलख् तॉवा, लोहा, सीसा, कोबाल्ट, सिलिका आदि गहरे सागर
में पाये जाते हैं।
3. मग्नतटों में उर्जा संसाधनों के भंडार - खनिज तेल, प्राकृतिक गैस
आदि।
4. सागरीय जल में घुले पदार्थ - नमक, ब्रोमीन, मैगनीश्यिम आदि।
प्रश्न - 10. हिन्द महासागर के
प्रमुख मत्सयन क्षेत्रों को लिखिये।
उत्तर - हिन्द महासागर के मत्सयन क्षेत्रों
में भारत, बांगलादेश, म्यांमार, मलेशिया, थाइलैंड, इण्डोनेशिया मत्स्यन ग्रहण
क्षेत्र शामिल हैं। भारत के पूर्वी तटों
पर 30 प्रतिशत एवं पश्चिमी तटों पर 70 प्रतिशत मत्स्यन होता है।
हिन्द
महासागर के अफ्रीकी तट पर उत्तरी- पश्चिमी अफ्रीका के समुद्र तटीय भाग में कुछ मात्रा में मत्स्यन
होता है। दक्षिण अफ्रीका तथा मेडागास्कर के मग्न तटों पर भी मुछ मछलियॉ पकडी
जाती हैं।
भारत
के सागरतटीय क्षेत्रों में सागर कृषि के अन्तर्गत झींगा पालन किया जाता है।
ये भी देखें -
एम ए भूगोल चतुर्थ समेस्टर, समुद्र विज्ञान, unit
-1
हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
एम ए भूगोल चतुर्थ समेस्टर, समुद्र विज्ञान, unit -2
हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
एम ए भूगोल चतुर्थ समेस्टर, समुद्र विज्ञान, unit -3
हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
एम ए भूगोल चतुर्थ समेस्टर, समुद्र विज्ञान, unit -4
हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
एम ए भूगोल चतुर्थ समेस्टर, समुद्र विज्ञान, unit -5
हेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें