OCEANOGRAPHY
Nature and scope of oceanography, distribution of land and water, surface configuration of the ocean floor, submarine relief of the pacific, Atlantic and Indian ocean.
MA GEOGRAPHY IV SEMESTER
एम ए भूगोल चतुर्थ सेमेस्टर
OCEANOGRAPHY
समुद्र विज्ञान
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ईकाई - 1 Unit - 1 |
समुद विज्ञान की पकृति एवं विषय क्षेत्र, भूमि तथा जल का वितरण, सामुद्रिक तली की बनावट, प्रशान्त, आन्ध्र तथा
हिन्द्र महासागर की तलीय उच्चावच। |
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Nature and scope of oceanography, distribution of land and water, surface configuration of the ocean floor, submarine relief of the pacific, Atlantic and Indian ocean. |
Q.1 what is nature of oceanography ? समुद्र विज्ञान की प्रकृति क्या है ?
समुद्र विज्ञान की प्रकृति में दुनिया के महासागरों और सागरों के सभी पहलुओं
का वैज्ञानिक अध्ययन शामिल है जिसमें उनके
भौतिक और रासायनिक गुण, उनकी उत्पत्ति और भूगर्भिक रूपरेखा शामिल हैं और सागरीय
वातावरण का अध्ययन है जिसमें सागरीय जीव और वनस्पतियॉ जीवित रहती हैं। सागरीय
प्रकृति निम्नलिखित अनुसार है।
1. विशालता - पृथ्वी पर लगभ्ग 71
प्रतिशत क्षेत्रफल पर स्थित सागर व महासागर विशालता को प्रदर्शित करते हैं।
2. विविधता - इसके सागर नितल की विविधता जैसे कटक, द्रोणी, गर्त, मग्नतट, सागरीय मैदान आदि भौतिक
प्रकृति को प्रकट करते हैं।
3. गतिक - तरंगें, ज्वार भाटा, सुनामी, सागरीय धाराओं से समुद्र विज्ञान की गतिक प्रकृति प्रकट होती हैं।
4. समकारी - सागर की प्रकृति समकारी है
जिसमें न तो गर्मी में ज्यादा गर्म होता है और न ही शीत में ज्यादा शीत होता है।
यह महाद्वीपीय जलवायु के विपरीत समकारी प्रकृति प्रस्तुत करता है। यह विश्व में
धाराओं के माध्यम से गर्म क्षेत्रों की गर्मी को ठंडे क्ष्ेात्र में और ठंडे
क्षेत्रों की ठंडी को गर्म क्षेत्र में ले जाता है जिससे पृथ्वी का तापमान सम
रहता है।
5. सार्वभौमिक विलेय - जल सार्वभौमिक विलेय है
महासागर की भी यही प्रकृति है इस कारण महासागर स्थल एवं सागर नितल में भूपर्पटी
के ठोस पदार्थो के सम्पर्क में आते ही विलेय प्रक्रिया प्रारंभ कर देती है और
विलेय हो जाने वाले पदार्थों को सागर स्वयं में विलेय कर लेता है।
6. लवणता - विलेयता के गुण के फलस्वरूप
सागर की प्रकृति लवणीय हो जाती है। एक किलाग्राम जल में लगभग 32 से 35 ग्राम ठोस
लवण घुली अवस्था में होते हैं।
7. अनाच्छादनात्मक प्रकृति- महासागरीय तरंगें तटों पर
अपरदनात्मक कार्य करती है जिससे अपरदन के फलस्वरूप तटों भिन्न भिन्न प्रकार की
स्थलाकृतियॉ बन जाती हैं अत: सागर का स्वभाव अपरदनकारी है। अपरदित पदार्थों को
लहरें निमग्न तटों पर जमा कर देती हैं लेकिन इन जमावों कण के अनुसार क्रम होता
है। तटों से सागर में गहराई की ओर निक्ष्ेापित कण महीन होते जाते हैं।
8. जीवन का पोषक - महासागरों एवं सागरों को जीवन का जन्मदाता
माना जाता है अत: सागर में असख्य प्रकार की वनस्पतियॉ एवं जीवजन्तु पाये जाते
हैं जिन्होंने स्थलीय पेड पौधों एवं जीव जन्तुओं को प्रभावित किया है।
9. आर्थिक उपयोगी - मानव की आर्थिक गतिविधियों
हेतु संसाधन का स्त्रोंत, भोजन का विकल्प, और सस्ते और अधिक दूरी के
भारी परिवहन को महासागर सुगम करता है अत: मानवीय गतिविधियों के महत्व के रूप में
सागर अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
Q.2 what is
scope of oceanography ? समुद्र विज्ञान का विषय क्षेत्र क्या है ?
समुद्र विज्ञान के विषय क्षेत्र के अर्न्तगत
1. सागर नितल उच्चावच - इसके अर्न्तगत सागर नितल का अध्ययन शामिल है
जिसमें सागरीय तली की बनावट व विस्तार का अध्ययन किया जाता है। सागर तली की
बनावट के अन्तर्गत मग्नतट, मग्नढाल, सागरीय कंदरायें, सागरीय मैदान, सागरीय खाईयॉ, सागरीय गर्त, सागरीय कटक, द्वीप व द्वीप समूह शामिल हैं।
2. सागरीय जल का तापमान - सागरीय जल तापमान का वृहद अवशोषक है यह तटवर्ती
क्षेत्रों के तापमान को न तो अधिक बढने देता है न ही घटने देता है सागरीय जल के
तापमान बढने या घटने से वैश्विक जलवायु पर प्रभाव पडता है सागरीय जल के तापमान का
अध्ययन समुद्र विज्ञान विषय का क्षेत्र है।
3. सागरीय लवणता - सागरीय जल अपनी विलेय क्षमता के कारण लगभग 1000
ग्राम जल में 32 से 35 ग्राम ठोस लवण घुले हुए होते हैं। ये लवण एक ओर सागरीय जीव
जन्तुओं के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है दूसरी ओर मानव उपयोग हेतु इन लवणों से नमक
भी बनाया जाता है। जिसका भोजन और उद्योगों में उपयोग किया जाता है। पृथ्वी की
प्राचीनता का अनुमान भी सागरीय लवणता से लगाया जाता है। अत: सागरीय लवणता सागर
विज्ञान का विषय क्षेत्र है।
4. सागरीय गतियॉ - सागरीय तरंगें, ज्वार-भाटा, सागरीय धारायें सागरीय जल की गति को प्रकट करती
हैं। इससे क्षेत्रीय सागरीय गुणों में परिवर्तन होता है तथा सागरीय तापमान व लवणता
का वितरण होता है इस कारण सागरीय गतियॉ सागर विज्ञान का विषय क्षेत्र है।
5. सागरीय निक्षेप - सागर नितल पर जमा ठोस पदार्थों को सागर निक्षेप
कहते हैं। इन निक्षेपों में विभिन्न प्रकार के जैविक, अजैविक पदार्थ होते हैं जो सागरीय पर्यावरण और
मानव हेतु महत्वपूर्ण है सागर विज्ञान का विषय क्षेत्र है।
6. प्रवाल भित्ति - प्रवाल सागरीय जीव हैं जो दीर्घावधि में छिछले
सागर नितल में संरचना का निर्माण करते हैं जिसे प्रवाल भित्ति कहा जाता है यह
प्रवाल भित्ति सागरीय जीवों के लिए पर्यावरण और आश्रय स्थल प्रदान करते हैं।
सागरीय जीवों की विविधता और पर्यटन उद्योग के लिए ये प्रवाल संरचनायें अति महत्वपूर्ण
होती हैं इनका अध्ययन सागरी विज्ञान का अंग है।
7. सागरीय संसाधन - सागर नितल खनिज संसाधनों हेतु, सागरीय गतियॉ स्वच्छ उर्जा हेतु, सागरीय विस्तार जलमार्ग हेतु और सागरीय जीवन
खाद्य आपूर्ति हेतु महत्वपूर्ण हैं इनका अध्ययन भी सागर विज्ञान के अन्तर्गत
आता है।
8. वैश्विक पर्यावरण, जैव विविधता, जलवायु, वैश्विक जलवायु, वैश्विक परिवहन और वैश्विक राजनीति का भूगोल
समझने में सागर विज्ञान अति महत्वपूर्ण है अत: सागर विज्ञान विश्व के अन्य विषय
क्षेत्रों को भी प्रभावति करता है।
Q.3 Describe
the submarine relief of the Atlantic ocean.
प्रश्न - 2 आन्ध्र महासागर का नितल उच्चावच का
वर्णन कीजिए।
उत्तर - आन्ध्र महासागर नितल का वर्णन निम्नलिखित
बिन्दुओं के अनुसार है।
1. सामान्य परिचय - उत्तर अमेरिका और यूरोप के मध्य एवं दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका
के मध्य उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 110 अक्षांशीय विस्तार में S आकार में फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8
करोड 20 लाख वर्ग किलोमीटर है जो कि पृथ्वी के क्षेत्रफल का 1/6 भाग है।
2. महाद्वीपीय मग्नतट - उत्तरी आन्ध्र महासागर के उत्तर पश्चिम में
उत्तरी अमेरिकी तट, उत्तर में ग्रीन लैण्ड
के तट तथा उत्तर पूर्व में यूरोप तट चौडे मग्नतट रखते हैं। मध्य आन्ध्र
महासागर में मैक्सिको की खाडी, रूम सागर में चौडे मग्न तट है। दक्षिणी आन्ध्र महासागर में
अर्जेन्टाइना तट व पूर्व में केप वर्ड में चौडे मग्न तट हैं।
3. मध्य अटलांटिक कटक - यह आन्ध्र महासागर के मध्य में उत्तर से दक्षिण की ओर महासागर
के मध्य में लगभग S आकार में उत्तर में ग्रीन लैण्ड से दक्षिण में
वोबट द्वीप तक सागरीय जल में डूबा हुआ कटक फैला है जिसे मध्य अटलांटिक कटक कहते
हैं। भूमध्य रेखा के उत्तर में इसे उत्तरी मध्य अटलांटिक कटक और भूमध्य रेखा
के दक्षिण में दक्षिणी मध्य अटलांटिक कटक कहते हैं।
4. महासागरीय मैदान (बेसिन) - आन्ध्र महासागर में लेब्राडोर बेसिन, उत्तरी अमेरिका बेसिन, ब्राजील बेसिन, स्पेनिश बेसिन, उत्तरी तथा दक्षिणी कनारी बेसिन, केपवर्ड बेसिन, अंगोला बेसिन, गायना बेसिन, केप बेसिन, अगुलहास बेसिन हैं।
5. महासागरीय गर्त - आन्ध्र महासागर में 19 गर्त पाये जाते हैं।
इनमें मोसले, पार्टोरिको, रोमांश, वाल्डिविया, बुचानन, नरेश प्रमुख हैं।
6. सीमान्त सागर - इनमें उत्तरी सागर, बाल्टिक सागर, भूमध्य सागर, कैरेबियन सागर, नार्वे सागर लेब्राडोर की खाडी, हडसन की खाडी, मैक्सिको की खाडी, मुख्य है।
उक्त बिन्दुओं के आधार
पर कहा जा सकता है आन्ध्र महासागर नितल विविधता युक्त है।
उत्त्र में 50 अंश अक्षांश के पास न्युफाउण्डलैंड उभार टेलिग्राफिक पठार और विविलटामसन कटक के नाम से जाना जाता है। 40 अंश उत्तरी अक्षांश के पास अजोर उभार, 10 अंश उत्तरी अक्षांस से भूमध्य रेखा तक के मध्य डालफिन उभार, भूमध्य रेखा पर सियरा लियोन उभार एवं पारा उभार भूमध्य रेखा से 20 अंश दक्षिणी अंक्षाशों तक चैलेन्जर उभार, 40 अंश अक्षांश के पास वालविस कटक पूर्व की ओर और रायोग्रांडो उभार पश्चिम की ओर दक्षिण में अटलांटिक इंडियन कटक के नाम से फैला हुआ है।
सर्वाधिकार लेखकाधीन
अजय सिंह पटेल
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