atmospheric pressure
Air pressure and wind
Atmospheric Pressure : pressure belts
shifting of pressure belts
Atmospheric Circulation
Planetary wind
Seasonal and local winds
Jet stream
महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं
उत्तर
प्रश्न - सागर तल पर वायुमण्डलीय दाब
कितना होता है ?
·
सागर तल पर वायुमण्डलीय दाब 1013.25 मिलीबार होता है। यह सागर तल
पर पारे की 76 सेमी उॅचाई के बराबर होता है।
·
प्रश्न - वायुमण्डल में उॅचाई की ओर वायुदाब में किस दर से कमी होती है ?
·
वायुमण्डल में उॅचाई की ओर जाने पर प्रति 600 फीट पर वायुदाब में
1 इंच पारे की उॅचाई में कमी आती है।
·
प्रश्न - सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन होने पर वायुदाब पेटियों में विस्थापन
कितना होता है ?
·
सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के साथ वायुमण्डलीय पेटियों में
आदर्श स्थिति से लगभग 5 अंश उत्तर या दक्षिण की ओर विस्थाप वायुदाब पेटियों का
विस्थापन कलाता है।
·
·
प्रश्न - इनमें से ग्रहीय पवने कौन सी हैं ?
·
पृथ्वी पर वर्ष भर चलने वाली हवाओं को ग्रहीय पवने कहते हैं जैसे
व्यापारिक पवने, पछुआ पवने, ध्रुवीय पवनें।
प्रश्न - इनमें से कौन सी स्थानीय पवनें हैं ?
·
पृथ्वी के किसी क्षेत्र में किसी समय अवधि में चलने वाली पवनों को
स्थानीय पवने कहते हैं जैसे मानसून, चिनूक, फॅान, लू, शीतलहरें आदि।
·
प्रश्न - जेट स्ट्रीम का अधिकतम विस्तार कितने अंश अक्षांश तक होता है ?
·
उपरी क्षोभमण्डल में ध्रुवीय उच्चदाब के चारो ओर पश्चिम से पूर्व
की ओर चलने वाली हवाओं जिनका अधिकतम विस्तार
20 अंश अंक्षाश तक होता है को जेट स्ट्रीम कहते हैं।
Short answer
1.
What is atmospheric pressur? Write the name of its
types on the earth.
वायुमण्डलीय दाब क्या है ? पृथ्वी पर स्थित इसके प्रकारों को लिखिये।
वायु भौतिक पदार्थ है जिसमें भार होता है। अत: वायुमण्डल में भी भार होता है।
समुद्र तल पर यह वायु का भार अधिक होता है
अत: समुद्रतल पर प्रति इकाई क्षेत्र पर पडने वाले वायुमण्डलीय भार को वायुदाब
कहते हैं।
पृथ्वी पर तापजनित एवं पृथ्वी के
घूर्णन के कारण वायुजनित वायुदाब पेटियॉ
1. अधिकतम तापमान के कारण भूमध्यरेखीय
निम्न वायुदाब पेटी जो आदर्श रूप में 5 अंश उत्तर से 5 अंश दक्षिण तक विस्तारित
है।
2. न्यूनतम ताप के कारण दोनों
गोलार्द्धों में ध्रुवों पर उत्पन्न उच्चदाब की पेटी।
3. वायु के उॅपर से नीचे बैठने के
कारण दोनों गोलार्द्धों में 30 से 35 अंश अक्षांशों पर उत्पन्न अश्वअक्षांशीय
उच्च वायुदाब पेटी।
4. वायु के नीचे से उॅपर उठने के
कारण दोनों गोलार्द्धों में 60 से 65 अंश अक्षांशों के मध्य उप ध्रुवीय निम्नवायुदाब
की पेटी।
2.
What is jet stream?
जेट स्ट्रीम क्या है ?
उपरी क्षोभमण्डल में परिध्रुवीय भॅवर जो 20 अंश अक्षांश से ध्रुवों के मध्य अधिकतम विस्तार है। इस परिध्रुवीय भंवर में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित हवाओं को जेट स्ट्रीम कहते हैं।
शीतकाल में परिध्रुवीय भंवर का विस्तार अधिकतम होता है एवं ग्रीष्मकाल में न्यूनतम होता है।
इन हवाओं की चौडाई 100 किमी से अधिक होती है। जेट स्ट्रीम का न्यूनतम वेग 100 किमी प्रति घंटा से अधिक एवं अधिकतम वेग 480 किमी प्रति घण्टा होता है।
जेट
स्ट्रीम का धरातलीय जलवायु पर प्रभाव पडता है।
3.
What is condensation? Write the name of its forms.
संघनन क्या है ? इसके रूपों को लिखिये।
संतृप्त वायु का तापमान कम करने से उसकी आर्द्रता सामर्थ्य में कमी आ जाती है जिससे वायु में उपस्थित जल द्रव रूप में परिवर्तित हो जाता है। जिसे संघनन कहते हैं।
यह द्रव वायु में उपस्थित कणों में लटकी अवस्था में या किसी सतह, वनस्पति आदि प्रकट होता है। जिसे कोहरा, ध्रुध, बादल, ओस, बूंद आदि कहते हैं।
जब तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम होता
है तब यह द्रव हिम रूप में बदल जाता है जिसे हिम, बादल, कोहरा, ओस, ओला आदि कहते
हैं।
4.
What is relative humidity?
सापेक्षिक आर्द्रता क्या है ?
निरपेक्ष आर्द्रता एवं आर्द्रता सामर्थ्य के अनुपात को आर्द्रता सामर्थ्य कहते हैं या किसी निश्चित तापमान पर निश्चित आयतन की वायु में उपस्थित जल एवं उसी तापमान पर उस वायु की अधिकतम नमी धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्षिक आर्द्रता कहते हैं।
इस अनुपात को 100 से गूणा कर देने से प्राप्त सापेक्षिक आर्द्रता प्रतिशत में व्यक्त हो जाती है।
वायु में सापेक्षिक आर्द्रता बढने पर वर्षा की संभावना और कम होने पर खुले मौसम की
संभावना व्यक्त की जाती है।
5.
What is local wind ?
स्थानीय पवनें क्या होती हैं ?
किसी स्थान विशेष पर स्थानीय
दशाओं से उत्पन्न वायुराशि को जिसका प्रभाव उस स्थान के मौसम और जलवायु पर होता
है। कभी कभी ऐसी पवनें उस स्थान की मौसम आधारित गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव
डालती है। जैसे चिनूक,फान, मानसून आदि।
Long answer महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
एवं उत्तर
1.
Discribe the planetary wind.
ग्रहीय पवनों का वर्णन कीजिये।
पृथ्वी पर निश्चित अक्षांशों पर वर्ष भर चलने वाली हवाओं को ग्रहीय/प्रचलित पवने कहते हैं।
5 अंश से 30 अंश के मध्य
इन्हें व्यापारिक पवनें, 35 अंश अक्षांश से 60 अंश अक्षांशों के मध्य पछुआ
पवनें एवं 65 अंश अक्षांशों से ध्रुव के मध्य इन्हें ध्रुवीय पवनें कहते हैं।
व्यापारिक पवनें –
उत्पत्ति का कारण – हवायें हमेशा
उच्च दाब से निम्न दाब की ओर चला करती हैं अत: अश्व अक्षांशीय उच्चदाब (30 से
35 अंश अक्षांश) से भूमध्य रेखीय निम्न दाब (0 से 5 अंश अक्षांश) की ओर हवायें चलना चाहिए लेकिन कोरियालिस बल के
कारण उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर और दक्षिण
गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हैं।
नामकरण - मध्य काल में इन हवाओं के सहारे सागरों पर पाल
वाले व्यापारिक जहाज चला करते थे जिससे इन हवाओं को व्यापारिक हवायें कहा गया।
विशेषतायें –
1.
ये हवाये वर्ष भर चला करती हैं।
2. महाद्वीपों के पूर्वी भागों में
सागरों से होकर आने के कारण वर्षा कराती है जिससे मानसूनी जैसे जलवायु प्रदेशों का
उदभव होता है।
3. महाद्वीपों के पश्चिम तक पहॅुचते
पहॅुचते इन हवाओं की नमी समाप्त हो जाती है जिससे महाद्वीपों के पश्चिमी भागों
में इन हवाओं की शुष्कता के कारण मरूस्थलीय जलवायु उत्पन्न हो जाती है।
4. मरूस्थलीय एवं मानसूनी हवाओं के
मध्य सवाना जलवायु पायी जाती है। जिसका उदभव उस अल्प वर्षा के कारण है जिसमें
केवल घास ही हो पाती है।
5.
महासागरों पर इन हवाओं के प्रभाव से उत्तरी एवं दक्षिणी
विषुवतरेखीय धाराओं का जन्म होता है जो पूर्व से पश्चिमी की ओर महासागरों में
बहती हैं।
पछुआ पवनें
1.
उदभव – 30 से 35 अंश स्थित उच्च दाब से उपध्रुवीय 60 से 65 अंश
निम्न दाब के कारण और कोरियालिस बल के कारण् दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की
ओर उत्तरी गोलार्द्ध में और उत्तर पश्चिम से दक्षिणी पूर्व की ओर दक्षिणी
गोलार्द्ध में प्रवाहित होने वाली हवायें पछुआ पवनें हैं। सामान्यत: ये हवायें
पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं।
. उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मसागरों
के उपर से आने के कारण इन हवाओं से पश्चिमी यूरोप में साल वर्षा होती है। शीतोष्ण
चक्रवात इन हवाओं के साथ पश्चिम से पूर्व दिशा में चला करते हैं।
3. उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय अवरोध होने के कारण पछुआ हवाओं की गति दक्षिणी गोलार्द्ध की तुलना में कम होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थलों के अभाव में पछुआ हवायें तीव्र गति से प्रवाहित होती हैं।
इइनकी गति के कारण 40 अंश
दक्षिणी अक्षांशें पर गरजती चालीसा, 50 अंश अक्षांशों पर भंयकर पचासा, 60 अंश
अक्षांशों पर इन्हें चीखती साठा कहते हैं।
ध्रुवीय हवायें –
पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में ध्रुवीय उच्चदाब से 60 से 65 अक्षांशेां पर स्थित उपध्रुवीय निम्नदाब की पेटी की ओर प्रवाहित होने वाली हवाओं को ध्रुवीय हवायें कहते हैं।
उत्तरी गोलार्द्ध में
इनकी दिशायें उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर होती है जबकि दक्षिणी
गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर होती है।
2.
What is the Atmospheric humidity. Describe its
type.
वायुमण्डलीय आर्द्रता क्या है इसके
प्रकारों का वर्णन कीजिये।
वायु में उपस्थित घुली हुई अवस्था (जलवाष्प) में स्थित जल की मात्रा को वायु की आर्द्रता कहते हैं।
इसे प्रति घन सेमी पर ग्राम में प्रकट करते हैं अर्थात एक घन सेमी वायु में उपस्थित जल की मात्रा को ग्राम में प्रकट करते है या प्रति घन फुट पर ग्रेन में प्रकट करते हैं।
यह आर्द्रता वायु के
तापमान, वायु वेग, चक्रवात, र्मासम व जलवायु की दशाओं को प्रभावित व निर्धारित
करती है। जैव मण्डल (वनस्पति एवं जीवों) हेतु भी वायुमण्डलीय आर्द्रता महत्वपूर्ण
है। आर्द्रता को निम्नलिखित प्रकारों से समझा जा सकता है।
निरपेक्ष आर्द्रता – किसी निश्चित तापमान पर किसी निश्चित आयतन की वायु में उपस्थित जल की मात्रा को उस वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।
इससे वहॉ की वायु की वर्तमान आर्द्रता का ज्ञान होता है। किसी स्थान की निरपेक्ष आर्द्रता अति कम होने से शुष्कता और अधिक होने पर वर्षा की दशायें निर्मित होती हैं।
आर्द्रता सामर्थ्य – किसी निश्चित तापमान पर किसी निश्चित आयतन की वायु की अधिकतम नमी धारण करने की क्षमता को उसकी आर्द्रता सामर्थ्य कहते हैं।
वायु के तापमान में वृद्धि करने पर आर्द्रता सामर्थ्य में वृद्धि और तापमान कम करने पर आर्द्रता सामर्थ्य में कमी होती है।
यदि वायु की निरपेक्ष
आर्द्रता उसकी आर्द्रता सामर्थ्य के बराबर हो जाती है तो वायु संतृप्त हो जाती
है। अर्थात वायु और अधिक नमी धारण नहीं कर सकती है। वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार
नमी धारण कर चुकी है।
सापेक्षिक आर्द्रता – निरपेक्ष आर्द्रता और आर्द्रता सामर्थ्य के अनुपात को सापेक्षिक आर्द्रता कहते हैं।
आर्द्रता सामर्थ्य को प्रतिशत में व्यक्त करने के लिए इस अनुपात को 100 से गुणा कर दिया जाता है।
यदि निरपेक्ष आर्द्रता और आर्द्रता सामर्थ्य का मान बराबर हो तो सापेक्षिक आर्द्रता 100 प्रतिशत होगी इस दशा में वायु संतृप्त अवस्था को प्राप्त कर लेती है। अर्थात वायु और अधिक नमी धारण नहीं कर सकती है।
यदि तापमान में वृद्धि कर दी जाये तो वायु की आर्द्रता सामर्थ्य में वृद्धि हो जायेगी यदि निरपेक्ष आर्दता में उसी अनुपात में वृद्धि न की जाये तो सापेक्षिक आर्दता का मान कम हो जायेगा।
इस प्रकार तापमान बढाने पर सापेक्षिक आर्दता के मान
में कमी आती है। इसके विपरीत यदि तापमान कम कर देने पर सापेक्षिक आर्द्रता के मान
में वृद्धि होती है।
सापेक्षिक आर्द्रता से मौसम की
भविष्यवाणी की जाती है सापेक्षिक आर्द्रता मान अधिक होने पर वर्षा की संभावना और
कम होने पर खुले मौसम की संभावना होती है।
3.
What is Rainfall ? describe its type.
वर्षा क्या है ? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिये।
वायुमण्डल से जल बूंदो का धरातल पर गिरने की घटना वर्षा है। वायुमण्डल में स्थित जलवाष्प का संघनन के पश्चात् जल बूंदों, हिमकणों, ओला में परिवर्तित होने तथा पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के धरातल पर गिरने की प्रक्रिया वर्षा है।
वायुमण्डल में जल वाष्प की आपूर्ति स्थल और जलमण्डल से होती है। वर्षा हेतु
जलवाष्प युक्त हवाओं का उपर उठना आवश्यक है। इस आधार पर जलवर्षा को तीन प्रकार
में बॉटा गया है।
संवहनीय वर्षा – संवहनीय वर्षा तीन
चरणों में होती है।
एक प्रारंभिक अवस्था - धरातल के गर्म होने पर धरातल के सम्पर्क में आने वाली हवायें गर्म होकर उपर उठती हैं।
उपर उठती हवायें शुष्क एडियाबेटिक दर 10 अंश सेल्सियस प्रति 1000 मीटर की दर से ठंडी होती हैं। इस दर से ठंडी होने और संतृप्त होने पर 6 अंश सेल्सियस प्रति 1000 मीटर की दर से ठंडी होती है।
उपर उठती हवाये ठंडी होने और संतृप्त के पश्चात् संघनन होने पर बादलों
का निर्माण होता है छोटी बूंदे मिलकर बडी बूंदे बनती हैं और वर्षा प्रारंभ हो जाती
है। संवहनीय वर्षा के तीन चरण होते हैं।
दूसरी अवस्था – वर्षा के होने से
उपर उठती हवाओं के साथ घर्षण होता है जिससे उपर उठती हवाओं की गति मंद होती है फिर
भी हवाओं का उठना जारी रहता है। इस स्थिति में एक ओर गर्म हवायें उपर उठ रही है
दूसरी ओर वर्षा नीचे की ओर आ रही होती है।
तीसरी अवस्था – वर्षा के होने के कारण धरातल के तापमान में कमी आने लगती है जिससे उपर उठने वाली हवाओं का उपर उठना बंद हो जाता है।
वर्षा के साथ नीचे उतरने वाली ठंडी हवायें चलने लगती हैं वर्षा समाप्त हो जाती है। धरातल
एवं आसपास के तापमान में कमी आ जाती है। मौसम सुहाना हो जाता है।
पर्वतीय वर्षा – गर्म आर्द हवाओं के मार्ग में पर्वत के कारण हवाओं को उपर उठना पडता है।
पर्वतों के सहारे उपर उठने वाली हवायें 10 डिग्री सेल्सियस प्रति 1000 मीटर की दर से ठंडी होती हैं। उॅचाई की एक सीमा पर जाकर वायु संतृप्त हो जाती है।
संतृप्त वायु 5 डिग्री सेल्सियस प्रति 1000 मीटर की दर से उपर उठती है। उपर उठती हुई संतृप्त वायु के संघनन के फलस्वरूप जलवाष्प जल में बदल जाता है। बादलों का निर्माण होता है और वर्षा होती है।
पर्वतीय वर्षा प्रक्रिया में
निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दु हैं।
1. हवायें कितनी उॅचाई पर वर्षा
करेगीं यह हवाओं में उपस्थित आर्दता की मात्रा और उनके ठंडे होने की दर पर निर्भर
करता है।
2. यदि तापमान समान हो तो अधिक
आर्द्र वायु जल्दी संतृप्त हो जायेगी और वर्षा
प्रारंभ हो जायेगी। यदि वायु कम आर्द्र है तो अधिक उॅचाई पर संतृप्त होगी
और अधिक उॅचाई पर वर्षा होगी।
3.
यदि पर्वतों की उॅचाई पर्याप्त न हो और हवायें पर्याप्त ठंडी न
हो पाये तो वर्षा की संभावना कम हो जाती है।
4. पर्वतों की स्थिति हवाओं की दिशा
के समकोण पर होनी चाहिए जिससे हवाओं को टकराकर उपर उठना पडे।
5.
पर्वतों के दूसरी ओर उतरती हवायें नीचे की ओर आने पर गर्म होती हैं
और उनकी वर्षा की संभावना नहीं होती हैं। अत: पर्वतों के विमुखी ढाल पर शुष्कता
होती है जिससे उस क्षेत्र को वृष्टि छाया क्षेत्र कहते हैं।
चक्रवातीय वर्षा – चक्रवात में हवायें कम दाब के केन्द्र की ओर झपटती हैं। लेकिन वे कोरियालिस बल के कारण इस कम दाब के केन्द्र का चक्कर लगाती हुई उपर की ओर उठ जाती हैं।
उपर उठती हवायें ठंडी होकर संतृप्त होती है संतृप्त और संघनित होने पर संघनन की गुप्त उष्मा वायु में मिल जाती है जिससे चक्रवात का निम्न दाब बना रहता है।
संघनित हवायें मेघ का निर्माण करती है जिससे वर्षा होती है। उष्ण
चक्रवात में हवायें बिना किसी वाताग्र के उपर उठती हैं लेकिन शीतोष्ण चक्रवातों
में हवायें वाताग्रों के सहारे उपर उठती हैं और वर्षा करती हैं।
सर्वाधिकार लखकाधीन©
Professorkibaat.blogspot.com
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