प्रश्न - 3 सौरमंडल क्या है ? इसके परिवार के सदस्यों को लिखिये।
उत्तर - सौर मण्डल जिसे सौर परिवार भी कहते हैं । सूर्य और सूर्य के गुरूस्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव में चारों ओर स्थित गतिशील व गतिहीन समस्त पिण्ड, पदार्थ या इनके समूह/समूहों को सौर मण्डल कहते हैं। इनमें सूर्य, ग्रह, उपग्रह, आवान्तर ग्रह(एस्टोरायड), पुच्छल तारा(कोमेट्स) आदि शामिल हैं।
ग्रह - यह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते हैं जैसे कि पृथ्वी। सूर्य से दूरी के क्रम में बुध शुक्र पृथ्वी मंगल, ब्रहस्पति, शनि, अरूण(यूरेनस), वरुण(नेप्चून)। प्लूटो को अब ग्रह की श्रेणी से अलग कर दिया गया है।
उपग्रह - ये ग्रहों की परिक्रमा करते हैं जैसे कि चन्द्रमा जो पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाती है। बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। मंगल के 2, बृहस्पति के 64, शनि के 61, अरूण के 27 और वरूण के 13 हैं। पृथ्वी का एक जिसे चन्द्रमा कहते हैं।
आवान्तर ग्रह (एस्टीयोराइड) - ये मंगल और बृहस्पति के मध्य 2000 से अधिक की संख्या में छोटे छोटे आकाशीय पिण्ड हैं सूर्य की परिक्रमा करते हैं जिन्हें आवान्तर ग्रह हैं।
पुच्छल तारा / धूमकेतु (कोमेट्स) - यह धूल और गैसों के बर्फ से बने होते हैं। सूर्य से दूर होने पर ठंडे होते हैं। लेकिन अपनी अनियमित अण्डाकार कक्षा में परिभ्रमण करते हैं। भ्रमण के दौरान सूर्य के समीप आने पर सूर्यातप से हिमीभूत गैसे गैस रूप में आ जाती है और सूर्य प्रकाश में चमक उठती है। जो कि हजारो किमी से लेकर करोडो किमी लम्बाई में होने कारण पॅूछ के रूप में दिखायी देती हैं। जिससे इसे पुच्छल तारा भी कहते हैं। उदाहरण - हैली पुच्छल तारा जो प्रति 76 वर्ष में एक बार दिखायी देता है।
उल्का या उल्काश्म - अन्तरिक्ष से पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करने वाले और पृथ्वी की ओर आते समय वायुमण्डल में तीव्र घर्षण से जलने और चमकने वाले पिण्डों को उल्का पिण्ड कहते हैं। लेकिन जो उल्का पिण्ड जलने के बाद भी शेष बच जाते हैं और पृथ्वी पर गिरते हैं उन्हें उल्काश्म कहते हैं।
पृथ्वी की उत्पत्ति की संकल्पनायें और प्रतिपादक
प्रतिपादक | पृथ्वी उत्पत्ति की परिकल्पना |
काण्ट | वायव्य राशि परिकल्पना |
लाप्लास | निहारिका परिकल्पना |
चैम्बरलिन | ग्रहाणु परिकल्पना |
जेम्स जीन्स | ज्वारीय परिकल्पना |
रसेल | द्वैतारक परिकल्पना |
होयल तथा लिटलिटन | तीन तारक परिकल्पना |
ओटोश्मिड | अन्तरतारक धूलि परिकल्पना |
अल्फबेन | अन्तरतारक मेघ परिकल्पना |
बनर्जी | सीफीड परिकल्पना |
उत्तर - निहारिका परिकल्पना - फ्रान्सीसी विद्वान लाप्लास ने 1796 में निहारिका परिकल्पना प्रस्तुत की। निहारिका परिकल्पना में लाप्लास ने काण्ट की गलतियों दूर किया। लाप्लास की परिकल्पना निम्नलिखित परिकल्पना पर आधारित है।
कि ब्रम्हाण्ड में एक विशाल तप्त गतिशील निहारिका थी।
यह निहारिका निरन्तर शीतल हो रही थी जिसमें उसका बाह्य भाग पहले शीतल होने लगा। शीतल होने की प्रक्रिया में से आयतन में कमी होने लगी। आयतन में कमी होने के कारण निहारिका की गति में वृद्धि होने लगी। अत्यधिक गति के कारण निहारिका में केन्द्रापसारित बल कार्य करने लगा। गतिशील निहारिका का उपरी भाग शीतल होने के कारण अत्यधिक घना हो गया और आन्तरिक भाग के साथ गति नहीं कर सका। केन्द्रपसारित बल के कारण बाह्ह भाग निहारिका से धीरे धीरे एक छल्ले के रूप में पृथक हो गया। यह पृथक छल्ला निहारिका का चक्कर लगाने लगा। लाप्लास के अनुसार यह छल्ला नौ छल्लों में विभाजित हो गया। समय के साथ निहारिका ये छल्ले एक दूसरे से दूर होते गये। चक्कर लगाते हुए इन छल्लों का पदार्थ एकत्रित हो गया जिसके शीतलन से एक पिण्ड बन गये जिन्हें ग्रह कहा गया। शेष निहारिका को सूर्य कहा गया। ये ग्रह पूर्ववर्ती छल्लों की भांति सूर्य का चक्कर लगाते रहे।
आलोचना -
1 लाप्लास ने यह नहीं बताया कि ब्रम्हाण्ड में पूर्व से तप्त और गतिशील निहारिका कहॉ से आयी और कैसे बनी।
2 निहारिका का कोणीय आयोग निहारिका को तोडने के लिए अपर्याप्त है।
निहारिका से निकले हुए छल्लों की संख्या नौ ही क्यों हैं इसका कोई उत्तर नहीं है।
3 जिस प्रक्रिया से निहारिका से छल्ले निकले वह प्रक्रिया अभी भी जारी रहनी चाहिए किन्तु ऐसा कुछ नहीं है।
4 निहारिका से निकला पदार्थ ठंडा होकर ठोस से पूर्व द्रव अवस्था में आया होगा जिससे उसका ठोस पिण्ड के रूप में चक्कर लगाना संभव नहीं।
5 इस परिकल्पना के अनुसार सभी उपग्रहों को अपने ग्रह के चारो ओर एक दिशा में घूमना चाहिए लेकिन शनि और व्रहस्पति ग्रह में ऐसा नहीं हो रहा है।
प्रश्न - 4 पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी जेम्स जीन्स की ज्वारीय परिकल्पना को लिखिये।
उत्तर - जेम्स जीन्स की ज्वारीय परिकल्पना - सन 1919 में ब्रिटिश विद्वान सर जेम्स जीन्स ने तत्पश्चात जेफरीन के संसोधन से ज्वारीय परिकल्पना का निर्माण हुआ। इस परिकल्पना कुछ कल्पित तथ्यों पर आधारित है जैसे
1. प्रारम्भ में सूर्य एक विशाल तारा था जो गैस से बना था।
2. ब्रम्हाण्ड में सूर्य के अतिरिक्त दूसरा विशालकाय तारा था जिसे साथी तारा कहा गया। यह तारा सूर्य से अधिक विशाल था।
3. सूर्य एक स्थान पर स्थिर था तथा साथी तारा गतिमान था जिसका पथ सूर्य के समीप से गुजर रहा था।
4. पास आते साथी तारे के गुरूत्वाकर्षण प्रभाव से गैस से बने सूर्य के बाह्य भाग पर ज्वारीय प्रभाव पड रहा था।
जैसे-जैसे विशालकाय तारा सूर्य के समीप आ रहा था सूर्य के बाह्य भाग में ज्वार उत्पन्न हो रहा था। जैसे-जैसे विशालकाय तारा समीप आता गया वैसे-वैसे आकर्षण शक्ति के कारण ज्वारीय प्रभाव बढता गया, निकटतम दूरी तथा आकर्षण के फलस्वरूप अधिकतम ज्वारीय प्रभाव से हजारो किलोमीटर लम्बी सिगारनुमा भाग सूर्य से निकलकर विशाल तारे की ओर आने लगा लेकिन विशाल साथी तारा सूर्य की निकटतम दूरी तय कर चुका था अब वह उसके पथानुसार सूर्य से दूर जा रहा था जिससे सूर्य से अलग हुआ सिगार के आकार का पदार्थ उसके पीछे नहीं जा सका और किन्तु वह सूर्य इतनी दूर आ चुका था कि सूर्य के आकर्षण बल से पुन: सूर्य पर नहीं पहॅुच सका और यह सिगार के आकार का पदार्थ सूर्य के चक्कर लगाता हुआ ठंडा होता रहा।
ग्रहों और उपग्रहों का निर्माण -
कालान्तर में सिगार के आकार का पदार्थ टुकडों में विभाजित हो गया जिससे ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी प्रकार उपग्रहों का निर्माण हुआ जो ज्यादा बडे ग्रह थे उनके अधिक ग्रह और जो छोटे ग्रह थे क्योंकि जो बडे ग्रह थे वे ज्यादा समय तक गैस रूप में रहे और देर से ठंडे हुए उनके कम ग्रह हुए। ग्रहों का आकार और उपग्रहों का आकर व संख्या तथा सिगार के पदार्थ के मध्य में बडे आकार के ग्रह तथा किनारों पर छोटे आकार के ग्रह वर्तमान सौर मण्डल के अनुरूप है। जिससे इस परिकल्पना को अधिक मान्यता मिली।
ग्रहों का परिभ्रमण कक्ष -
इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों के कक्ष को सूर्य के कक्ष की तुलना में झुका होना चाहिए जो कि वर्तमान ग्रहों के कक्ष से पूर्णत: मेल खाती हैं।
आलोचना -
1. ब्रम्हाण्ड में इस प्रकार तारे एक दूसरे के इतने समीप नहीं जाते हैं।
2. यदि इस प्रकार को कोई विशाल तारा था तो वर्तमान में वह कहॉं है इसका कहीं उल्लेख नहीं है।
3. यदि ग्रहों का निर्माण सूर्य से निकले ज्वारीय पदार्थ से हुआ है तो ये ग्रह पास पास होने चाहिए ग्रहों की (सूर्य के व्यास से 500 गुनी अधिक दूरी)अत्यधिक दूरी परिकल्पना के अनुरूप नहीं है।
प्रश्न - 4 पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्पना को लिखिये।
उत्तर - चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्पना
1905 में चैम्बरलिन ने पृथ्वी की उत्पत्ति की ग्रहाणु परिकल्पना प्रस्तुत की । यह परिकल्पना द्वैतारक परिकल्पना है जिसमें सूर्य के अलावा दूसरा साथी विशाल तारे की कल्पना की गयी है। सूर्य, शीतल, ठोस कणों के समूह से निर्मित परिक्रमण गति से युक्त था। एक विशालकाय तारा जिसे साथी तारा कहा गया सूर्य के इतने समीप पहॅुच गया कि तारे की ज्वारीय शक्ति से सूर्य की सतह से अत्यधिक मात्रा में छोटे बडे कण इतने बाहर आ गये कि वे अब सूर्य पर नहीं जा सके। इन कणों को चेम्बरलिन ने प्लानेटेसिमल कहा। इनमें जो बडे कण थे उन पर छोटे कणों का जमाव होता रहा फलस्वरूप पिण्ड का निर्माण हुआ जिसका अपना गुरूस्वाकर्ष बल निर्मित हुआ।अत: आकर्षण क्षेत्र केर अन्य कणों का भी जमाव होता गया। अन्तत: ये पिण्ड ग्रहों में परिवर्तित हो गये इनमें से एक ग्रह पृथ्वी भी है। मूल पिण्ड का शेष भाग वर्तमान सूर्य में परिवर्तित हो गया।
पृथ्वी पर वायुमण्डल का उदभव
पृथ्वी के आकार में वृद्धि के साथ गुरूस्वाकर्षण में वृद्धि के कारण ब्रम्हाण के आकर्षण क्षेत्र में आये वायुमण्डली कणों को आकर्षित किया जिससे ये कण पृथ्वी के वायुमण्डल का भाग बने। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उष्मा की उत्पत्ति से रासायनिक क्रियाओं और ज्वालामुखी के उद्भेदन के फलस्वरूप पृथ्वी के आन्तरिक भाग से भी गैसे वायुमण्डल में शामिल होते गयी।
महासागरों की उत्पत्ति
वायुमण्डल में जलवाष्प के संघनन से वर्षा हुई जिससे पृथ्वी के निचले भागों में जल के भर जाने से सागरों का निर्माण हुआ छोटे छोटे सागरों के मिल जाने से महासागरों का निर्माण हुआ। शेष भाग महाद्वीप या द्वीप कहे गये।
आलोचना -
1 ग्रहों के परिभ्रमण की समान दिशा इस परिकल्पना के विपरीत है।
2. ग्रहाणुओं के समूहन से ग्रहों का निर्माण हुआ तो इस प्रकार के शेष ग्रहाणु ग्रहों की आकर्षण शक्ति के बाहर सौर मण्डल में पाये जाने चाहिए जो कि उक्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं।
3 इस परिकल्पना के अनुसार निर्मित ग्रहों का कोणीय वेग उतना नहीं होना चाहिए जितना कि वर्तमान में है।
प्रश्न - 4 पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी ओटोश्मिड की अन्तरतारक धूलि परिकल्पना को लिखिये।
उत्तर - आटोश्मिड की अन्तरतारक धूलि परिकल्पना (Inter-Stellar Dust Hypothesis) -
इसमें ओश्मिड ने ग्रहों की उत्पत्ति गैस और धूल कणों से मानी है। इस परिकल्पना के अनुसार ब्रम्हाण्ड में गैस मेघों तथा धूलि कणों की उत्पत्ति उल्काओं या तारों से निकले पदार्थों से हुई जो आकाश में फैले हुए थे। यहॉ से गुजरते हुए कुछ गैस के बादलों एवं धूल कणों को सूर्य ने अपनी आकर्षण शक्ति से अपनी ओर आकर्षित कर लिया। यह धूल और गैसों का समूह सूर्य का चक्कर लगाने लगा। धूल अधिक मात्रा में तथा गैस कम मात्रा में थी। समय के साथ धूलकण संगठित होकर एक चपटी डिस्क में परिवर्तित हो गये। धूल कणों के आपसी टकराव के कारण उनकी गति कम हो रही थी जिस कारण वे संगठित होकर एक पिण्ड में परिवर्तित हो गये। आगे चलकर ये पिण्ड अन्य बडे कणों को आकर्षित कर ग्रहों में बदल गये। जो शेष पदार्थ रह गये थे उनमें भी यही प्रकिया हुई और वे उपग्रहों में परिवर्तित हो गये। इस परिकल्पना से ग्रह निर्माण की अनेक समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
1. ग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर धूलकणों एवं गैस से हुआ है फलस्वरूप गहों और सूर्य के कोणीय आवेग में अन्तर स्वभाविक है। जिस ग्रह पथ का अर्धव्यास जितना कम होगा उसका कोणीय आवेग उतना ही कम होगा।
2. सूर्य के समीप अधिक उष्णता एवं दूर कम उष्मा के कारण सूर्य के पास वाले ग्रह भारी पदार्थ वाले तथा दूर वाले ग्रह हल्के पदार्थों से निर्मित हैं।
3. धूल कणों एवं गैसों का विस्तार सूर्य से जितनी दूरी तक रहा होगा उतनी दूरी तक ग्रहों का निर्माण हुआ। अत: ग्रहों के मध्य दूरी असमान है।
आलोचना
आटोश्मिड यह नहीं बता पाये कि गैस, मेघ तथा धूलिकणों का निर्माण कैसे हुआ।
सूर्य धूलकणों एवं गैसों को आकर्षित करने में कैसे सफल हो गया इसका कोई व्याख्या नहीं है।
प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु प्रश्न
1. सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, अरूण, वरूण (यम (प्लूटो) को अब ग्रह की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है)।
2. सौर मण्डल का सबसे बडा ग्रह- ब्रहस्पति और सबसे छोटा ग्रह - बुध है।
3. पृथ्वी के सर्वाधिक निकट ग्रह - शुक्र
4. सर्वाधिक उपग्रहों वाला ग्रह - ब्रहस्पति- 64 उपग्रह
5. पृथ्वी से सूर्य की दूरी - 14 करोड 98 लाख
6. पृथ्वी का व्यास 12756 किमी है।
7. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365.26 दिन में पूरा करती है।
8. पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 घण्टा 56 मिनिट व 4 सेकेण्ड में घूमती है।
9. अरूण और शुक्र पृथ्वी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं।
10. चन्द्रमा पृथ्वी से 3,84,400 किमी दूर है।
11. चन्द्रमा पृथ्वी का 27 दिन 7 घंटे 43 मिनिट और 11.47 सेकेण्ड में पूरा चक्कर लगा लेता है।
12. आवान्तर ग्रह(एस्टीयोराइड) मंगल और वृहस्पति के मध्य 2000 से अधिक की संख्या में पाये जाने वाले पिण्ड हैं।
13. पृथ्वी की अनुमानित आयु 4 अरब 60 करोड वर्ष है।
14. शुक्र सबसे चमकीला ग्रह है।
15 . शुक्र को सुबह का तारा(morning star) और सांझ का तारा (evening star) भी कहते है।
16. शुक्र को पृथ्वी की बहिन भी कहते हैं।
17. पृथ्वी सौर मंडल में एकमात्र ग्रह है जिस पर जीवन है।
18. मंगल को लाल ग्रह भी कहते हैं।
19. शनि के चारो ओर वलय है।
20. शुक्र और अरूण को छोडकर सभी ग्रहों का अपने अक्ष पर घूर्णन पश्चिम से पूर्व की ओर है।
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PAPER-I बी ए प्रथम वर्ष भूगोल पाठ्यक्रम भौतिक भूगोल
PAPER-II बी ए प्रथम वर्ष भूगोल पाठ्यक्रम मानव भूगोल का परिचय
PAPER-III बी ए प्रथम वर्ष भूगोल पाठ्यक्रम प्रायोगिक भूगोल
BA I YEAR QUESTION AND ANSWER (SOLVED)
PAPER - I
PAPER - II
UNIT - I मानव भूगोल की परिभाषा, प्रकृति, विषय क्षेत्र, एवं अन्य विज्ञानों से संबन्ध।
UNIT - I क्षेत्रीय विभिन्नता की संकल्पना Areal differentiation
UNIT - II निश्चयवाद, संभववाद, नव निश्चयवाद, द्वैतवाद
UNIT - III पर्यावरण से अनुकूलन एस्कीमो, बुशमैन, मसाई
UNIT - IV जनसंख्या वृद्धि, घनत्व और वितरण
BA II YEAR SYLLABUS
बी ए द्वितीय वर्षभूगोल पाठ्यक्रम भौतिक भूगोल
MA GEOGRAPHY SEMESTER-I
PAPER -I GEOMORPHOLOGY (भूआकृति विज्ञान)

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